विमल अधर, निकटिं मोह हा पापी !
वदन-सुमन-गंध लोपी ॥
वदन-सुमन-गंध लोपी ॥
धवला ज्योत्स्ना राहुसि अर्पी
सुखद सुधाकर, विमल अधर ॥
| गीत | – | सुरेश हळदणकर ∙ प्रभाकर कारेकर |
| नाटक | – | संगीत विद्याहरण |
| राग | – | हमीर |
| ताल | – | एक्का |
| चाल | – | तेंडेरे कारन |
| गीत प्रकार | – | नमन नटवरा |
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